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Post by Dr. Yatri Thor on Sept 28, 2014 22:45:26 GMT 5.5
इस हिन्दी के कोने मे हम सिर्फ़ हिन्दी मे बात करेंगे......क्या कहते हो आप लोग ?
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Post by Lisbeth Salander on Sept 29, 2014 1:13:02 GMT 5.5
इसी बहाने हिन्दी की तैयारी हो जाएगी
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Post by Lisbeth Salander on Oct 16, 2014 3:53:40 GMT 5.5
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान ~ कबीर
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Post by Dr. Yatri Thor on Oct 16, 2014 4:11:19 GMT 5.5
यह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है
चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से चमक रहे पीछे मुड देखो चरण-चिनह जगमग से शुरू हुई आराध्य भूमि यह क्लांत नहीं रे राही; और नहीं तो पाँव लगे हैं क्यों पड़ने डगमग से बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नहीं है
अपनी हड्डी की मशाल से हृदय चीरते तम का, सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का। एक खेप है शेष, किसी विध पार उसे कर जाओ; वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का। आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है; थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा, लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा। जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलाएगी ही, अम्बर पर घन बन छाएगा ही उच्छ्वास तुम्हारा। और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है। थककर बैठ गये क्या भाई! मंज़िल दूर नहीं है।
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Post by Dr. Yatri Thor on Oct 21, 2014 22:59:21 GMT 5.5
पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे, कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा...
एक गरीब बच्चे कि आखों मे, मैने दिवाली को मरते देखा.
थी चाह उसे भी नए कपडे पहनने की... पर उन्ही पूराने कपडो को मैने उसे साफ करते देखा.
तुमने देखा कभी चाँद पर बैठा पानी? मैने उसके रुखसर पर बैठा देखा.
हम करते है सदा अपने ग़मो कि नुमाईश... उसे चूप-चाप ग़मो को पीते देखा.
थे नही माँ-बाप उसके.. उसे माँ का प्यार आैर पापा के हाथों की कमी मेहंसूस करते देखा.
जब मैने कहा, "बच्चे, क्या चहिये तुम्हे"? तो उसे चुप-चाप मुस्कुरा कर "ना" मे सिर हिलाते देखा.
थी वह उम्र बहुत छोटी अभी... पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा
रात को सारे शहर कि दीपो कि लौ मे... मैने उसके हसते, मगर बेबस चेहरें को देखा.
हम तो जीन्दा है अभी शान से यहा. पर उसे जीते जी शान से मरते देकखा.
नामकूल रही दिवाली मेरी... जब मैने जि़दगी के इस दूसरे अजीब से पहेलु को देखा.
कोई मनाता है जश्न आैर कोई रेहता है तरस्ता...
मैने वो देखा.. जो हम सब ने देख कर भी नही देखा.
लोग कहते है, त्योहार होते है जि़दगी मे खूशीयो के लिए,
तो क्यो मैने उसे मन ही मन मे घूटते और तरस्ते देखा?
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WanderLust
Junior Member
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल !!
Posts: 25
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Post by WanderLust on Oct 22, 2014 4:22:13 GMT 5.5
आप लोग हिंदी में टाइप कैसे करते है? सीधा यही पर या गूगल जैसे किसी इनपुट टूल पर टाइप करके यंहा पेस्ट करते हैं? अगर सीधा यंही टाइप करते हैं तो ………… कैसे ?
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WanderLust
Junior Member
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल !!
Posts: 25
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Post by WanderLust on Oct 22, 2014 4:30:20 GMT 5.5
जब कोई भी मनुष्य अनासक्त होकर चुनौती देता है इतिहास को, उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है नियति नहीं है पूर्व निर्धारित - उसको हर क्षण मानव-निर्णय बनाता-मिटाता है।
धर्मवीर भारती
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Post by Lisbeth Salander on Oct 22, 2014 6:02:33 GMT 5.5
पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे, कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा... हृदयस्पर्शी! किसकी रचना है यह?
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Post by Lisbeth Salander on Oct 22, 2014 6:11:34 GMT 5.5
आप लोग हिंदी में टाइप कैसे करते है? सीधा यही पर या गूगल जैसे किसी इनपुट टूल पर टाइप करके यंहा पेस्ट करते हैं? अगर सीधा यंही टाइप करते हैं तो ………… कैसे ? मैं क्विलपाड़ में टाइप करके कॉपी पेस्ट करती हूँ | बाकी लोगों का नहीं पता | Dr. Yatri Thor बता सकते हैं कि डाइरेक्ट कैसे करना है |
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Post by Don Quixote on Oct 22, 2014 7:37:56 GMT 5.5
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Post by Dr. Yatri Thor on Oct 22, 2014 22:28:10 GMT 5.5
पटाखो कि दुकान से दूर हाथों मे, कुछ सिक्के गिनते मैने उसे देखा... हृदयस्पर्शी! किसकी रचना है यह? I copied it from someone on facebook. I am a Hindi poem fan, but cant write such a nice poem. btw whnvr I type in hindi, its using some website like this one www.quillpad.in/editor.html
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Post by Dr. Yatri Thor on Jan 21, 2015 22:41:18 GMT 5.5
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो कहीं नहीं कोई सूरज, धुआँ धुआँ है फ़िज़ा ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो!
- by a friend
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Post by avinashagrawal on Feb 19, 2015 15:21:48 GMT 5.5
बेसब्र हर शक्स, यहाँ वहाँ फिर रहा है .... कोई शक, कोई गफलत, कोई गर्दिश, मे घिर रहा है.... मुझसे मत पूछो, की रास्ता किधर है....... मैं खुद हूँ मुसाफिर, मुझे अपनी फिकर है|
k'avi
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